एक फेसबुक पोस्ट, 60 पुलिसकर्मी घायल, 110 लोगों की गिरफ़्तारी और 3 की मौत। बाकी जो पब्लिक प्रॉपर्टी का नुक्सान हुआ सो अलग! ये हैं बैंगलोर हिंसा जुड़े अभी तक के आंकड़े। और इन सबकी जो सबसे बड़ी वजह थी वो थी एक फेसबुक पोस्ट। यानि सोशल मीडिया पर लिखी किसीकी पर्सनल ओपिनियन (जो हो सकता है मानसिक रूप से बीमार हो, या जो वो कह रहा है की मेरा अकाउंट हैक कर लिया गया है, या फिर वो वाकई किसी समुदाय विशेष से नफरत करता हो)। सच्चाई जो भी हो वो जांच का विषय है! खैर इससे कुछ लोगो की भावनाएं आहात हो गयी और उन लोगों ने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया वो भी सिर्फ एक फेसबुक पोस्ट की वजह से।
ऐसी सिर्फ एक घटना नहीं है!पूरी दुनिया में न जाने ऐसे कई मामले हैं जो एक बड़ी घटना को अंजाम दे जाते हैं। किसी ने जयकार नहीं की, तो किसी ने पूरी कौम को आंतकवादी कह दिया, किसी को अज़ान से दिक्कत है तो किसी को राष्ट्रगान से। ऐसी बहुत सी वजहों से ये चंद लोगों की धार्मिक भावनाएं आहात हो जाती हैं, और वो एक बड़ी घटना को अंजाम देने की वजह बन जाती हैं। ऐसा लगता है की जैसे ये चंद लोग धार्मिक भावनाओं के आहात होने का या तो इंतज़ार कर रहे होते हैं, या फिर कैसे दूसरे समुदाय की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाई जाए इसकी प्लानिंग कर रहे होते हैं, और या तो फिर इनकी राजनीती या एजेंडों को ऑक्सीजन इसी से मिलता होगा!
खैर वापिस आते हैं बैंगलोर हिंसा पर!जहाँ सांप्रदायिक हिंसा के दौरान जब हर जगह तोड़-फोड़, आगजनी, फायरिंग और पत्थरबाज़ी हो रही थी, तभी कुछ युवकों ने ह्यूमन चैन बना एक मंदिर को बचा लिया!और इस मंदिर को बचाने वाले जो युवक थे, वो उसी कौम के थे जो धार्मिक उन्माद में कई पब्लिक प्रॉपर्टी को बर्बाद कर रहे थे! यानि वो उसी कौम के थे जिनकी भावनाएं उस फेसबुक पोस्ट से आहात हुई थी, जो उन युवकों ने भी पढ़ी थी! पर उनकी धार्मिक भावनाएं उन दंगाइयों से बिलकुल अलग थी।
फ्रिंज एलिमेंट आपको हर कौम में मिल जायेंगे! जिनका धर्म से कम और अपने एजेंडों से ज्यादा सरोकार होता है। पर उनकी वजह से पूरी कौम को एक ही चश्मे से देखना कहाँ तक जायज़ है। नफरत कभी जायज़ नहीं होती क्योंकि आप भी एक दिन वही बन जाते हैं जिनसे आप उसी वजह से नफरत कर रहे होते हैं। और ये बात सारे समुदायों पर लागू होती है।
जब कभी सांप्रदायिक तनाव या घटना होती है, हम सब बराबर करने में जुट जाते हैं, की उसने ये किया था, तो हमने ये किया। फिर बात धीरे धीरे इतिहास के पुराने पन्नो तक आ जाती है, की तब तुमने ये किया था, तब तुमने वो किया था, तुम्हारा तो इतिहास ही ऐसा है। फिर ये बात अनन्तहीन बहस में बदल जाती है।
कुल मिलाकर आपके पास एक ही घटना के दो पहलु हैं,आप उसे अपने अपने चश्मे से देख सकते हैं की आप किसके साथ खड़े हैं। बस एक बात याद रखियेगा की गणित में दोनों तरफ बराबर(L.H.S =R.H.S) करने पर आपको पांच नंबर मिल जायेंगे, पर असल जिंदगी में बराबर करने पर घर के पांच लोग कम हो जाते हैं।